मणिपुर में एक बार फिर से हिंसा और अशांति ने जोर पकड़ लिया है। पिछले कुछ दिनों में, बड़े पैमाने पर प्रदर्शनकारियों ने मंत्रियों और विधायकों के घरों पर हमले किए हैं। इन घटनाओं ने इंफाल घाटी में तनाव को और बढ़ा दिया है। इसके पीछे क्या कारण हैं, और यह स्थिति कैसे विकट हुई, आइए विस्तार से समझते हैं।
मणिपुर हिंसा का मुख्य कारण
जिरिबाम शूटआउट और इसके प्रभाव
हाल ही में जिरिबाम में हुए शूटआउट में 10 कुकी उग्रवादियों की मौत हुई, जिसके बाद छह व्यक्तियों के शव बरामद हुए। इन शवों की स्थिति इतनी खराब थी कि इससे स्थानीय लोगों में आक्रोश फैल गया। यह घटना इस लंबे समय से चली आ रही हिंसा का मुख्य ट्रिगर बनी।
सीओसीओएमआई और समाजिक संगठनों की भूमिका
इंफाल घाटी के बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के सिविल सोसायटी ग्रुप्स, जैसे सीओसीओएमआई (कॉर्डिनेशन कमेटी ऑन मणिपुर इंटीग्रिटी), ने केंद्र और राज्य सरकार को चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही निर्णायक कार्रवाई नहीं हुई, तो जनता का गुस्सा बढ़ेगा।
सीओसीओएमआई के प्रवक्ता खुर्खाम अथौबा ने कहा,
“सरकार को आतंकवादी समूहों और सशस्त्र गुटों के खिलाफ त्वरित और सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो जनता का गुस्सा सरकार के खिलाफ फूट पड़ेगा।”
प्रदर्शन और हिंसा का विस्तार
मंत्रियों और विधायकों के घरों पर हमले
पिछली रात, गुस्साई भीड़ ने कई मंत्रियों और विधायकों के घरों पर हमला किया। यह गुस्सा महीनों से जारी हिंसा और निष्क्रिय प्रशासन के कारण है।
हिंसा के राजनीतिक पहलू
विपक्ष के नेता ओकरम इबोबी सिंह ने कहा कि अगर समस्या का समाधान विधायकों के इस्तीफे से हो सकता है, तो वह इसके लिए तैयार हैं। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार पर संवैधानिक विफलता का आरोप लगाते हुए कहा,
“यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इस संकट का समाधान करे। संवैधानिक तंत्र पूरी तरह से टूट चुका है।”
एएफएसपीए (AFSPA) पर मतभेद
मैतेई बनाम कुकी समुदाय
मणिपुर के मैतेई और कुकी समुदायों के बीच लगातार संघर्ष की वजह से आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट (AFSPA) पर भी विवाद हो गया है।
- मैतेई समुदाय चाहता है कि AFSPA को घाटी के छह पुलिस थाना क्षेत्रों से हटाया जाए।
- दूसरी ओर, कुकी-ज़ो समुदाय ने मांग की है कि AFSPA को पूरे घाटी क्षेत्र में लागू किया जाए, जबकि पहाड़ी इलाकों से इसे हटाया जाए।
हिंसा और मानवाधिकार: आवाज़ें और प्रतिक्रियाएं
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का गुस्सा
कंगपोकपी जिले से मानवाधिकार कार्यकर्ता सिल्विया ने कहा,
“अब बहुत हो चुका। न्याय की हमारी आवाज़ को दबाया नहीं जा सकता। यह मार्च हमारे शहीदों और हमारे सम्मान के लिए है।”
केंद्र और राज्य की प्रतिक्रिया
- केंद्र सरकार ने स्थिति को संभालने के लिए सीआरपीएफ (CRPF) के वरिष्ठ अधिकारियों को भेजा है।
- राज्य सरकार ने केंद्र से AFSPA पर पुनर्विचार करने और छह पुलिस थाना क्षेत्रों से इसे हटाने की अपील की है।
समाधान और भविष्य की चुनौतियां
मणिपुर में अशांति का यह दौर न केवल राज्य बल्कि पूरे देश के लिए चिंता का विषय है। राजनीतिक इच्छाशक्ति, सामुदायिक समझौता और प्रशासनिक तत्परता से ही इस समस्या का समाधान संभव है।
जनता की मांगें
- सभी राजनीतिक नेताओं को एकजुट होकर समाधान निकालने की जरूरत है।
- आतंकवादी और सशस्त्र समूहों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
- न्याय और सुरक्षा की बहाली के लिए निर्णायक कदम उठाए जाने चाहिए।
सरकार की भूमिका
केंद्र और राज्य सरकार को संवेदनशीलता के साथ इस मुद्दे को सुलझाना होगा। इस समस्या का समाधान न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक स्तर पर भी होना चाहिए।
निष्कर्ष
मणिपुर में फैली यह अशांति लंबे समय से चल रहे गहरे सामाजिक और राजनीतिक विभाजन का नतीजा है। इसे सुलझाने के लिए सामुदायिक सहयोग, पारदर्शिता और प्रशासनिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। अगर यह स्थिति समय रहते नियंत्रित नहीं हुई, तो यह समस्या और विकट हो सकती है।