उत्तर प्रदेश के सैंभल जिले में हुई हिंसा ने न केवल राज्य में बल्कि पूरे देश में राजनीति, धर्म और कानून के परिप्रेक्ष्य में गहरी चिंता उत्पन्न कर दी है। 22 नवम्बर को सैंभल में हुए घटनाक्रम में तीन लोगों की मौत हो गई और 30 से ज्यादा पुलिसकर्मी घायल हुए। यह हिंसा उस समय भड़की जब एक अदालत द्वारा आदेशित मस्जिद सर्वे के दौरान स्थानीय लोग और पुलिस के बीच झड़पें हुईं। विवादित जमामस्जिद को लेकर एक लंबा कानूनी संघर्ष जारी है, जिसमें दावा किया गया है कि यह मस्जिद हिंदू मंदिर की जगह पर बनाई गई थी। इस लेख में हम सैंभल हिंसा के घटनाक्रम को विस्तार से समझेंगे, जिसमें इस सर्वे के साथ जुड़ी राजनीतिक, सामाजिक और कानूनी जटिलताएं शामिल हैं।
सैंभल हिंसा का कारण
सैंभल में हिंसा की शुरुआत 22 नवम्बर को उस समय हुई जब एक अदालत द्वारा नियुक्त “एडवोकेट कमिशनर” के नेतृत्व में एक टीम मस्जिद का सर्वे कर रही थी। यह सर्वे उस दावे के तहत किया जा रहा था जिसमें कहा गया है कि यह मस्जिद एक हिंदू मंदिर के स्थान पर बनी है। अदालत के आदेश के बाद, सर्वे टीम ने सुबह 7:30 बजे से काम शुरू किया, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, स्थानीय लोगों की भीड़ जुटने लगी और उन्होंने पुलिस से विरोध करना शुरू किया।
हिंसा का फैलाव और पुलिस की प्रतिक्रिया
भीड़ की संख्या बढ़कर लगभग 1000 लोगों तक पहुंच गई। यह लोग पुलिस की मौजूदगी और सर्वे के दौरान परेशान थे। रिपोर्ट्स के अनुसार, कुछ लोगों ने पुलिस पर पत्थर फेंके और कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि पुलिस ने आंसू गैस का इस्तेमाल किया। इसके बाद, स्थिति और उग्र हो गई और तीन लोगों की मौत हो गई जबकि 30 से अधिक पुलिसकर्मी घायल हो गए। पुलिस अधिकारियों के अनुसार, मरने वालों की पहचान नसीम, बिलाल और नौमान के रूप में की गई।
सर्वे का कानूनी पहलू और राजनीतिक प्रतिक्रिया
यह सर्वे एक याचिका के आधार पर किया जा रहा था, जिसमें दावा किया गया था कि मुग़ल सम्राट बाबर ने 1529 में मंदिर को नष्ट करके इस मस्जिद का निर्माण कराया था। इतिहासकारों का मानना है कि “बाबरनामा” और “ऐन-ए-अकबरी” जैसी ऐतिहासिक पुस्तकों में इस मंदिर के विध्वंस का उल्लेख मिलता है। कुछ लोग इसे ऐतिहासिक सच्चाई जानने का एक जरिया मानते हैं, जबकि कुछ लोग इसे धार्मिक स्थलों की पवित्रता का उल्लंघन मानते हैं।
समाजवादी पार्टी (SP) के प्रमुख अखिलेश यादव ने इस हिंसा को भाजपा सरकार की एक साजिश बताया, जिसका उद्देश्य हाल ही में हुए उपचुनावों में हुई धांधली के आरोपों से ध्यान हटाना था। वहीं, कांग्रेस के राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाते हुए एक वीडियो साझा किया, जिसमें पुलिस अधिकारियों को सीधे फायरिंग करते हुए दिखाया गया था।
पुलिस कार्रवाई और गिरफ्तारी
सैंभल पुलिस के मुताबिक, इस हिंसा के संबंध में 15 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें तीन महिलाएं भी शामिल थीं। इन लोगों पर आरोप है कि उन्होंने सर्वे टीम के खिलाफ हिंसा भड़काई थी। हालांकि, पुलिस ने दावा किया कि वीडियो में दिखाए गए फायरिंग की घटना की सत्यता की जांच की जा रही है, और ऐसा कोई आदेश नहीं दिया गया था।
सर्वे की स्थिति और आगे की कार्यवाही
हिंसा के बावजूद, सर्वे टीम ने अपना काम पूरा किया और अदालत के निर्देशानुसार वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी के साथ स्थल का गहन परीक्षण किया। सर्वे रिपोर्ट 29 नवम्बर तक अदालत में पेश की जाएगी। इस घटना ने राज्य में धर्मनिरपेक्षता, धार्मिक भावनाओं और कानूनी प्रक्रिया के बीच एक नई बहस को जन्म दिया है।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं
इस घटना के बाद सैंभल में राजनीतिक बयानबाजियां तेज हो गईं। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस सहित अन्य दलों ने इस हिंसा को सरकार की विफलता और असंवेदनशीलता के रूप में पेश किया। वहीं, कुछ संगठनों ने इसे धार्मिक उन्माद फैलाने की कोशिश बताया। इस घटनाक्रम ने पूरी तरह से देश में सामाजिक और धार्मिक सौहार्द की स्थिति को प्रभावित किया है।
सैंभल हिंसा की घटना एक गंभीर मुद्दे को उजागर करती है, जो सिर्फ एक स्थानीय विवाद नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुआ है। धार्मिक स्थलों की पवित्रता और ऐतिहासिक सच्चाई को लेकर यह विवाद भविष्य में और अधिक राजनीतिक और सामाजिक झगड़ों को जन्म दे सकता है। ऐसे मामलों में सरकार और प्रशासन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, और उन्हें हर पहलू पर संवेदनशीलता के साथ विचार करना चाहिए।